1.Lalita
Kumari v. State of UP
इस
case
में
Supreme
कोर्ट
ने
आदेश
दिया
था
cognizable
case में FIR दर्ज
करना
जरूरी
है।
2.
Mohd. Ahmad Khan vs Shah Bano Begum
इस
केस
में
supreme
कोर्ट
ने
आदेश
दिया
था
कि
मुस्लिम
महिलाएं
भी
भारतीय
दंड
प्रक्रिया
सहिंता
(Cr.P.C.)
धारा
125 के अंतर्गत
अपने
पति
से
भरणपोषण
(Maintenance)
के
लिए
case
file कर सकते है।
3.
D.K. Basu v. State of Bengal
इस
केस
में
supreme
court ने बहुत महत्वपूर्ण
guidelines
जारी
की
थी
जिसमे
स्पष्ट
किया
था
कि
अगर
कोई
व्यक्ति
arrest
हो
जाता
है
तो
उसके
क्या
अधिकार
है।
4.
Nilabati Bahera v. State of Orissa
निलाबति
बहेरा
के
case
में
supreme
कोर्ट
ने
आदेश
दिया
था
कि
यदि
किसी
व्यक्ति
को
अवैध
तरीके
से
arrest
किया
जाता
है
और
जेल
में
रखा
जाता
है
तो
उसे
compensation
दिया
जाएगा।
5.
Sheela Barse v. State of Maharashtra
वैसे
तो
criminal
law में महिलाओं
को
arrest
से
संबंधित
अधिकार
दिए
गए
है
लेकिन
फिर
भी
supreme
कोर्ट
ने
इस
case
में
कुछ
महत्वपूर्ण
guidlines
जारी
की
थी।
7.
Chanmuniya v. Virendra Kumar Singh Kushwaha
जब
कोई
जोड़ा
(couple)
Live-in relationship में रहता
है
तो
महिला
के
कोई
अधिकार
नही
होते
है, परन्तु
इस
केस
में
सुप्रीम
कोर्ट
ने
स्पष्ट
किया
कि
live-in
में
रह
रही
महिला
भी
भरणपोषण
के
लिए
केस
दायर
कर
सकती
है।
8. Satya
Pal Singh v. State of MP
आमतौर
पर
यह
होता
था
कि
यदि
कोई
पीड़ित
मर
जाता
है
तो
फिर
केस
खत्म
हो
जाता
है, लेकिन
सत्य
पाल
सिंह
के
केस
में
supreme
कोर्ट
ने
स्पष्ठ
किया
कि
पीड़ित
की
मृत्यु
हो
जाने
पर
उसके
पिता
को
अपील
करने
का
अधिकार
होगा।
9.
CBI v. Anupam J. Kulkarni
इस
case
में
Supreme
कोर्ट
ने
आदेश
दिया
कि
police
किसी
भी
व्यक्ति
को
police
remand में 15 दिन से
ज्यादा
के
लिए
नही
रख
सकती
है।
10
Shakuntala Devi v. State of U.P.
Cr.P.C.
की
धारा
200 के अन्तर्गत
कोई
भी
व्यक्ति
किसी
अन्य
के
खिलाफ
court
में
Criminal
complaint दायर कर
सकता
है, यह
शिकायत
उसी
केस
में
दायर
हो
सकती
है
जहाँ
FIR
न
हुई
हो।
Supreme
court ने शकुंतला
देवी
के
case
में
यह
स्पष्ट
किया
कि
अगर
किसी
व्यक्ति
के
पास
civil
remedy है तो
भी
वह
धारा
200 में complaint
कर
सकता
है।
11. Dina
Nath v. Emperor
Supreme
कोर्ट
ने
इस
case
में
यह
आदेश
दिया
कि
किसी
भी
serious
या
कॉम्प्लिकेटेड
केस
में
summary
trial नही चल सकता
है।
12
Surendra Singh v. State of UP
आम
तौर
पर
अपीलीय
कोर्ट
में
दो
judge
case की सुनवाई
करते
है, इस
case
में
सुप्रीम
कोर्ट
ने
यह
आदेश
दिया
कि
यदि
किसी
केस
में
एक
judge
judgment लिखता है
और
अगर
उसे
सुनाने
से
पहले उसकी मृत्यु
हो
जाती
है
तो
दूसरा
judge
उस
फैसले
को
नही
सुना
सकता।
13
Naresh v. State of UP
साधारण
तौर
पर
जब
कोई
कोर्ट
किसी
अपराधी
को
सजा
सुनाता
है
तो
उस
अपराधी
के
पास
अधिकार
होता
है
कि
वह
उस
से
बड़ी
अदालत
में
अपील
कर
सकता
है।
इस
केस
में
supreme
कोर्ट
ने
यह
स्पष्ट
किया
कि
यदि
किसी
अपराधी
को
धारा
302
(murder) के लिए
दोषी
ठहराया
गया
है
तो
High
court उस अपराध
को
धारा
302 की जगह
304 में बदल
नही
सकता
है।
आम
तौर
पर
High
court उस व्यक्ति
की
सजा
कम
कर
सकता
है
या
उसे
दोषमुक्त
कर
सकता
है।
14
Rasiklal v. Kishore Khanchand Wadhwani
इस
case
में
Supreme
कोर्ट
ने
यह
स्पष्ठ
किया
कि
Cr.P.C.
धारा
436 के अन्तर्गत
जमानत
लेने
का
अधिकार
absolute
है
15
Gurbaksh Singh Sibbia v. State of Punjab
इस
मामले
में
Supreme
कोर्ट
ने
anticipatory
bail से संबंधित
guidelines
जारी
की
थी।
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