भारतीय
कानून, नियम
और
न्यायिक
फैसले
भारत
में
एक
arrested person के अधिकारों
को
स्पष्ट
करते
हैं।
यहां
यह
उल्लेख
करना
उचित
होगा
कि
arrested
person कानूनी अधिकारियों
द्वारा
अपराध
के
कमीशन
की
आशंका
में
स्थानांतरित
होने
की
आजादी
से
वंचित
है।
इसलिए, एक
arrested
person तब तक
दोषसिद्ध
नहीं
होता
जब
तक
कि
उसका
अपराध
court
में
विधिवत
साबित
नहीं
हो
जाता।
भारतीय
फौजदारी
कानून
में
कुछ
ऐसी
परिस्तिथियाँ
होती
है
जिनके
तहत
किसी
अपराध
के
आरोपी
को
गिरफ्तार
किया
जाना
important
हो
जाता
है, चलिए
जानते
है
कौन
सी
है
वो
परिस्तिथियाँ:-
Trial में
Attendance
(उपस्थित) के
लिए
किसी आरोपी
का
trial
अति
आवश्यक
है
क्योंकि
यह
उसके
अपराध
को
दोषी
ठहराने
या
दोषमुक्त
करने
में
सहायता
करेगा।
इसलिए,
trial के समय आरोपी
की
उपस्थिति
अनिवार्य
आवश्यकता
है।
आरोपी
की
उपस्थिति
के
लिए
कानून
में
आरोपी
की
गिरफ्तारी
का
प्रावधान
किया
गया
है।
सावधानी
के लिए
यदि police
या
किसी
अन्य
ऑथोरिटी
को
यह
लगता
हैं
कि
किसी
व्यक्ति
द्वारा
किसी
अपराध
को
करने
का
खतरा
है, तो
ऐसे
व्यक्ति
को
arrest
करने
के
लिए
एक
सावधानी
के
रूप
में
आवश्यक
हो
जाता
है।
सही
नाम और
पता प्राप्त
करने के
लिए
जब एक
पुलिस
अधिकारी
द्वारा
किसी
व्यक्ति
से
पूछताछ
की
जा
रही
है
और
वह
व्यक्ति
अपना
नाम
और
पता
बताने
से
इनकार
कर
देता
है, तो
कुछ
ऐसी
परिस्थितियों
में
जो
(Cr.P.C)
दंड
प्रक्रिया
संहिता
की
धारा
42 में दी
गयी
है।
यह
प्रावधान
arrest
करने
के
लिए
कहता
है
यदि
किसी
पुलिस
अधिकारी
की
उपस्थिति
में, किसी
व्यक्ति
पर
गैर-संज्ञेय
(Cognizable
offence) अपराध करने
का
आरोप
लगाया
है
या
उसका
नाम
या
पता
देने
से
इनकार
करने
पर
आरोप
लगाया
गया
है।
किसी
पुलिस अधिकारी
को उसके
कर्तव्य का
निर्वहन करने
में बाधा
पहुचाना
जो भी
व्यक्ति
एक
पुलिस
अधिकारी
को
उसकी
duty
करने
से बाधित करता
है, उसे
पुलिस
अधिकारी
द्वारा
तुरंत
arrest
किया
जा
सकता
है।
यह
एक
पुलिस
अधिकारी
के
कर्तव्यों
के
प्रभावी
निर्वहन
के
लिए
आवश्यक
है।
Judicial Custody (कानूनी
हिरासत) से
भागने का
प्रयास करना
सीआरपीसी
की
धारा
41
(1) (E) के तहत
कोई
भी
पुलिस
अधिकारी
मजिस्ट्रेट
के
आदेश
के
बिना
और
बिना
किसी
वारंट
के
किसी
भी
व्यक्ति
को
गिरफ्तार
कर
सकता
है
जो
कानूनी
हिरासत
से
भाग
गया
है
या
भागने
का
प्रयास
करता
है।
Rights of an arrested Person
(गिरफ्तार व्यक्ति
के कानूनी
अधिकार)
गिरफ्तारी
के आधार
या कारण
सूचित करने
का अधिकार-
Arrest के
आधार
या
कारण
के
बारे
में
सूचित
करना
किसी
भी
आरोपी
का
कानूनी
अधिकार
है।
सीआरपीसी
के
धारा
50 और 50A में
यह
प्रावधान
है
कि
जिस
व्यक्ति
को
arrest
किया
जा
रहा
है
उसे
बिना
किसी
देरी
के
arrest
करने
के
आधार
और
कारणों
को
बताना
कानूनी
कर्तव्य
है।
यहां
तक
कि संविधान
का
अनुच्छेद
22
(1) arrest person को संरक्षण
प्रदान
करता
है
और
कहता
है
कि
गिरफ्तार
किया
गया
कोई
भी
व्यक्ति
ऐसी
गिरफ्तारी
के
लिए
आधार
और
कारण
जाने
बिना
हिरासत
में
नहीं
लिया
जाएगा।
गिरफ्तारी
के
आधार
पर
किसी
भी
गलती
या
गलतफहमी
(यदि कोई हो)
से
बचने
के
लिए
गिरफ्तारी
के
आधार
की
समय
पर
सूचना
अनिवार्य
है।
Arrest या
detention
की
स्थिति
में
अधिकारियों
को
arrest
करने
के
लिए
दिशानिर्देशों
को
पालन
करने
वाले
Landmark
अधिकारियों
में
से
एक
D.K.
Basu बनाम State of West Bengal सुप्रीम
कोर्ट
का
फैसला
है।
जमानत
के अधिकार
के बारे
में सूचित
किये जाने
का अधिकार
सीआरपीसी
की
धारा
50
(2) के तहत गैर-जमानती
अपराध
के
आरोपी
व्यक्ति
के
अलावा
किसी
भी
व्यक्ति
को
गिरफ्तार
करने
वाले
प्रत्येक
पुलिस
अधिकारी
को
गिरफ्तार
व्यक्ति
को
यह
सूचित
करना
आवश्यक
है
कि
वह
जमानत
पर
रिहा
होने
का
हकदार
है
और
वह
उस
पर
ज़मानत
की
व्यवस्था
कर
सकता
है।
बिना
देरी किए
मजिस्ट्रेट के
सामने पेश
किये जाने
का अधिकार
धारा 56 और 76 के तहत
सीआरपीसी
में
कहा
गया
है
कि
गिरफ्तार
किए
गए
व्यक्ति
को
बिना
किसी
देरी
के
मामले
में
क्षेत्राधिकार
वाले
न्यायालय
या
न्यायालय
के
समक्ष
पेश
किया
जाएगा।
Summon और Warrant में क्या अंतर होता है?
Summon और Warrant में क्या अंतर होता है?
24 घंटे
से अधिक
हिरासत में
नहीं रहने
का अधिकार
इस अधिकार
में
यह
कहा
गया
है
कि
arrest
करने
वाले
अधिकारी
को
मजिस्ट्रेट
के
समक्ष
अनावश्यक
देरी
के
बिना
arrested
person को पेश
करना
आवश्यक
है
और
किसी
भी
मामले
में
ऐसी
देरी
24 घंटे से
अधिक
नहीं
होगी।
हालांकि, 24 घंटे का
निर्धारित
समय
गिरफ्तारी
के
स्थान
से
मजिस्ट्रेट
की
अदालत
तक
की
यात्रा
के
लिए
आवश्यक
समय
को
शामिल
नहीं
करती
है।
यदि
इस
प्रावधान
का
गिरफ्तार
करने
वाले
अधिकारी
द्वारा
पालन
नहीं
किया
जाता
है, तो
गिरफ्तारी
को
गैरकानूनी
माना
जाएगा
वकील
(Advocate)
से परामर्श
करने का
अधिकार
भारतीय
संविधान
का
अनुच्छेद
22
(1) एक वकील द्वारा
मौलिक
अधिकार
के
रूप
में
परामर्श
और
बचाव
के
लिए
arrested
person के अधिकार
को
मान्यता
देता
है।
इस
पावधान
में
कहा
गया
है
कि
arrest
किए
गए
किसी
भी
व्यक्ति
को
तब
तक
हिरासत
में
नहीं
लिया
जाएगा
जब
तक
कि
उसे
ऐसे
arrest
के
कारणों
और
आधार
के
बारे
में
सूचित
न
किया
गया
हो
और
न
ही
उसे
किसी
वकील
से
परामर्श
के
अधिकार
से
वंचित
किया
जाएगा।
मुफ्त
कानूनी सहायता
पाने का
अधिकार
यह वैधानिक
रूप
से
मान्यता
प्राप्त
अधिकार
नहीं
है, हालांकि
Khatri
(II) बनाम State of Bihar के
मामले
में
Supreme
Court ने स्पष्ट
रूप
से
कहा
था
कि
राज्य
एक
गिरफ्तार
व्यक्ति
को
मुफ्त
कानूनी
सहायता
प्रदान
करने
के
लिए
एक
संवैधानिक
जनादेश
के
तहत
है
कानूनी
सहायता
प्रदान
करेगा, इसमें
यह
भी
कहा
गया
है
कि
फ्री
कानूनी
सहायता
केवल
तब
ही
नही
दी
जाएगी
जब
ट्रायल
शुरू
होता
है, बल्कि
जब
आरोपी
पहली
बार
मजिस्ट्रेट
के
सामने
भी
पेश
होता
है
और
जब
उसे
समय-समय
पर
रिमांड
किया
जाता
है
तब
भी
उसे
कानूनी
सहायता
दी
जाएगी।
इसके अलावा,किसी
आरोपी
व्यक्ति
को
मुफ्त
कानूनी
सहायता
के
अधिकार
से
इनकार
नहीं
किया
जा
सकता
है, भले
ही
आरोपी
ने
इसके
लिए
आवेदन
न
किया
हो।
डॉक्टर
द्वारा जांच
का अधिकार
सीआरपीसी
की
धारा
54 में कहा
गया
है
कि
जब
कोई
गिरफ्तार
व्यक्ति
यह
request
करता
है
कि
उसके
शरीर
की
जांच
से
ऐसे
सबूत
मिलेंगे
जो
उसके
द्वारा
किसी
अपराध
के
आरोप
को
खत्म
कर
देंगे
या
जो
अपने
शरीर
पर
किसी
भी
अपराध
के
किसी
अन्य
व्यक्ति
द्वारा
किये
जाने
के
बारे
में
कहेगा, तो
मजिस्ट्रेट
यदि
ऐसी
request
की
जाती
है
तो
करेगा
तो
doctor
द्वारा
ऐसे
व्यक्ति
के
शरीर
की
जांच
का
निर्देश
देंगा।
D.K. Basu बनाम
State
of West Bengal में सुप्रीम
कोर्ट की
Guidelines
D.K. Basu बनाम
State
of West Bengal में सुप्रीम
कोर्ट की
Guidelines
ü इस
फैसले
में
Supreme
Court कहा कि किसी
व्यक्ति
को
हिरासत
में
लेने
के
समय
गिरफ्तारी
करने
वाले
अधिकारी
द्वारा
निम्नलिखित
निर्देशो
का
पालन
किया
जाना
चाहिए:
ü गिरफ्तारी
को
अंजाम
देने
वाले
और
गिरफ्तारी
की
पूछताछ
को
संभालने
वाले
पुलिस
कर्मियों
को
सटीक, दृश्यमान
और
स्पष्ट
पहचान
और
उनके
पदनामों
के
स्पष्ट
रखना
चाहिए।
ऐसे
सभी
पुलिस
कर्मियों
के
ब्योरे
जो
गिरफ्तारी
के
संबंध
में
पूछताछ करते है
उनका
नाम
एक
रजिस्टर
में
दर्ज
किया
जाना
चाहिए।
ü गिरफ्तारी
के
समय
गिरफ्तारी
करने
वाला
पुलिस
अधिकारी
गिरफ्तारी
के
समय
एक
arrest
memo तैयार करेगा।
Arrest
memo को कम से
कम
एक
गवाह
द्वारा
sign
किया
जाएगा, जो
या
तो
गिरफ्तारी
करने
वाले
के
परिवार
का
सदस्य
हो
या
इलाके
का
कोई
सम्मानित
व्यक्ति
हो
सकता
है।
जहां
से
गिरफ्तारी
की
जाती
है।
Arrest
करने
वाला
अधिकारी
भी
इस
पर
sign
करेगा
और
उसमे
गिरफ्तारी
का
समय
और
तारीख
भी
लिखा
जाएगा।
ü एक
व्यक्ति
जिसे
गिरफ्तार
किया
गया
है
या
हिरासत
में
लिया
गया
है
और
उसे
पुलिस
स्टेशन
या
पूछताछ
केंद्र
या
अन्य
लॉक-अप
में
हिरासत
में
रखा
जा
रहा
है, वह
अपने
किसी
मित्र
या
रिश्तेदार
या
अन्य
व्यक्ति
को, जो
उसके
परिचित
है
या
उसके
कल्याण
में
रुचि
रखता
है, को
सूचित
किया
जाएगा।
,
जैसे
ही
व्यवहारिक
है, कि
उसे
गिरफ्तार
कर
लिया
गया
है
और
किसी
विशेष
स्थान
पर
हिरासत
में
लिया
जा
रहा
है, जब
तक
कि
गिरफ्तारी
के
ज्ञापन
का
गवाह
खुद
ऐसा
दोस्त
या
गिरफ्तारी
का
रिश्तेदार
नहीं
है।
ü गिरफ्तारी
के
स्थान
और
गिरफ्तारी
के
स्थान
को
पुलिस
द्वारा
अधिसूचित
किया
जाना
चाहिए
जहां
Arrested
person का दोस्त
या
रिश्तेदार
जिले
के
कानूनी
सहायता
संगठन
और
संबंधित
क्षेत्र
के
पुलिस
स्टेशन
के
माध्यम
से
जिले
या
शहर
के
बाहर
रहता
है।
ü गिरफ्तार
किए
गए
व्यक्ति
को
इस
अधिकार
के
बारे
में
अवगत
कराया
जाना
चाहिए
कि
किसी
को
उसकी
गिरफ्तारी
या
हिरासत
के
बारे
में
सूचित
किया
जाए, जैसे
ही
उसे
गिरफ्तार
किया
जाए
या
हिरासत
में
रखा
जाए।
ü गिरफ्तारी
के
स्थान
एक
डायरी
में
लिखा
जाना चाहिए, जो
उस
व्यक्ति
के
दोस्त
के
नाम
का
भी
खुलासा
करेगा
जिसे
गिरफ्तारी
की
सूचना
दी
गई
है
और
उस
डायरी
में
उन
पुलिस
अधिकारियों
की
details
भी
उस
डायरी
में
दर्ज
की
जाएगी।
ü गिरफ्तार
वयल्टी
जहां
वह
अनुरोध
करता
है, उसकी
गिरफ्तारी
के
समय
उसके
मामूली
चोटों
की
भी
जांच
की
जानी
चाहिए, यदि
उसके
शरीर
पर
कोई
भी
मौजूद
है
और
उसे
record
किया
जाना
चाहिए।
"निरीक्षण मेमो(Inspection
Memo)" को Arrested
person और पुलिस
अधिकारी
द्वारा
sign
किया
जाना
चाहिए
और
उसकी
एक
copy
arrested person को दी
जानी
चाहिए।
ü गिरफ्तार
व्यक्ति
की
हर
48 घंटे में
डॉक्टर
द्वारा
परीक्षण
किया
जाना
होना
चाहिए, आरोपी
का
ऐसा
परीक्षण
संबंधित
राज्य
या
केंद्रशासित
प्रदेश
द्वारा
नियुक्त
डॉक्टरों
के
पैनल
द्वारा
किया
जाना
चाहिए।Director,
Health Services द्वारा सभी
तहसील
और
जिलो
के
लिए
डॉक्टरों
का
एक
ऐसा
पैनल
तैयार
किया
जाना
चाहिए।
ü उपरोक्त
उल्लिखित
arrest
memo सहित सभी दस्तावेजों
की
प्रतियां, उनके
रिकॉर्ड
के
लिए
इलाका
मजिस्ट्रेट
को
भेजी
जानी
चाहिए।
ü Arrest
person को पूछताछ
के
दौरान
अपने
वकील
से
मिलने
की
अनुमति
दी
जा
सकती
है।
ü सभी
जिला
और
राज्य
मुख्यालयों
पर
एक
पुलिस
नियंत्रण
कक्ष
उपलब्ध
कराया
जाना
चाहिए, जहाँ
गिरफ्तारी
के
स्थान
पर
गिरफ्तारी
और
गिरफ्तारी
के
स्थान
के
बारे
में
सूचना
अधिकारी
द्वारा
गिरफ्तारी
के
12 घंटे के
भीतर
और
पुलिस
नियंत्रण
कक्ष
में
गिरफ्तारी
के
कारण
बताई
जाएगी।
इसे
एक
विशिष्ट
नोटिस
बोर्ड
पर
प्रदर्शित
किया
जाना
चाहिए।
Conclusion
दोस्तो
आशा
करता
हूँ
आपको
समझ
आ
गया
होगा
कि
भारत
में
गिरफ्तार
व्यक्ति
ले
पास
कई
कानूनी
अधिकार
उपलब्ध
होते
है, लेकिन
जब
किसी
व्यक्ति
को
यह
अधिकार
पता
नही
होते
है
तो
वह
इनका
लाभ
नही
उठा
पाता
है
और
पुलिस
के
अत्याचार
का
शिकार
हो
जाता
है, आप
इस
Article
को
अपने
दोस्तों, रिश्तेदारो
आदि
को
भेज
सकते
है
ताके
वे
लोग
भी
इन
बातों
से
वाकिफ
हो
पाएं।
अगर
आपका
कोई
सवाल
है
तो
आप
comment
के
माध्यम
से
पूछ
सकते
है।
आपने
अपना
समय
देकर
इस
Article
को
पढ़ा
उसके
लिए
आपका
धन्यावाद।
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